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मदन-मृणालिनी
 


तुम्हारा मकान कहां है ?

ब...में।

तुम यहां कैसे आये ?

भागकर ।

नौकरी करोगे ?

अच्छा, हमारे साथ चलो।

बालक ने सोचा कि सिवा इस काम के और क्या करना है, तो फिर इनके साथ ही उचित है । कहा---अच्छा,चलिये !

बंगाली महाशय उस बालक को घुमाते-फिराते एक मकान के द्वार पर पहुँचे । दरवान ने उठकर सलाम किया। वह बालक सहित एक कमरे में पहुंचे, जहां एक नवयुवक बैठा हुआ कुछ लिख रहा था, सामने बहुत-से कागज इधर-उधर बिखरे पड़े थे।

युवक ने बालक को देखकर पूछा---बाबूजी, यह बालक कौन है?

यह नौकरी करेगा, तुमको एक आदमी की जरूरत थी ही, सो इसको हम लिवा लाये है, अपने साथ रक्खो---बाबूजी यह कहकर घर के दूसरे भाग में चले गये ।

युवक के कहने पर बालक भी अकचकाता हुआ बैठ गया । उनमें इस तरह बाते होने लगी--

युवक---क्यों जी, तुम्हारा नाम क्या है ?

बालक---(कुछ सोचकर) मदन ।

युवक---नाम तो बड़ा अच्छा है। अच्छा, कहो, तुम क्या खाओगे?रसोई बनाना जानते हो ?

बालक---रसोई बनाना तो नहीं जानते । हां, कच्ची-पक्की जैसी हो,बनाकर खा लेते है, किन्तु...

अच्छा, संकोच करने की कोई जरूरत नहीं है--इतना कहकर युवक ने पुकारा---कोई है ?