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छाया
१२
 

युवक—तो हमारे लिए कौन दूसरा स्थान है?

युवती—मैं तो प्रस्तुत हूं।

युवक—हम तुम्हारे पहले।

युवती ने कहा—तो चलो।

युवक ने मेघ-गर्जन-स्वर से कहा—चलो।

दोनों हाथ में हाथ मिलाकर पहाड़ी से उतरने लगे। दोनों उतरकर चन्द्रप्रभा के तट पर आये, और एक शिला पर खडे हो गये। तब युवती ने कहा—अब बिदा!

युवक ने कहा—किससे? मैं तो तुम्हारे साथ—जब तक सृष्टि रहेगी तब तक—रहूंगा।

इतने ही में शाल-वृक्ष के नीचे एक छाया दिखाई पड़ी और वह इन्हीं दोनों की ओर आती हुई दिखाई देने लगी। दोनों ने चकित होकर देखा कि एक कोल खड़ा है। उसने गम्भीर स्वर से युवती से पूछा—चन्दा! तु यहां क्यों आई?

युवती—तुम पूछनेवाले कौन हो!

आगन्तुक युवक—मैं तुम्हारा भावी पति 'रामू' हूं।

युवती—मैं तुमसे ब्याह न करूंगी।

आ॰ यु॰—फिर किससे तुम्हारा ब्याह होगा?

युवती ने पहले के आये हुए युवक की ओर इंगित करके कहा—इन्हीं से।

आगन्तुक युवक से अब न सहा गया। घूमकर पूछा—क्यों हीरा! तुम ब्याह करोगे?

हीरा—तो इसमें तुम्हारा क्या तात्पर्य है?

रामू—तुम्हें इससे अलग हो जाना चाहिये।

हीरा—क्यों, तुम कौन होते हो?

रामू—हमारा इससे सम्बन्ध पक्का हो चुका है।

हीरा—पर जिससे सम्बन्ध होनेवाला है, वह सहमत हो