निकला । राजा साहब ने उस पर वार किया। गोली लगी, पर
चमड़े को छेदती हुई पार हो गई;इससे वह जानवर भागकर
निकल गया । अब तो राजा साहब बहुत ही दुःखित हुए। हीरा को बुलाकर कहा---क्यों जी, यह जानवर नही मिलेगा?
उस वीर कोल ने कहा---क्यों नही ?
इतना कहकर वह उसी ओर चला । झाड़ी मे जहां वह चीता घाव से व्याकुल बैठा हुआ था, वहा पहुंचकर उसने देखना आरंभ किया । क्रोध से भरा हुआ चीता उस कोल-युवक को देखते ही झपटा । युवक असावधानी के कारण वार न कर सका, पर दोनों हाथों से उस भयानक जन्तु की गर्दन को पकड़ लिया, और उसने भी इसके कंधे पर अपने दोनों पंजों को जमा दिया।
दोनों में बल-प्रयोग होने लगा। थोड़ी देर में दोनों जमीन पर लेट गये।
४
यह बात राजा साहब को विदित हुई । उन्होंने उसकी मदद
के लिए कोलो को जाने की आज्ञा दी। रामू उस अवसर पर था ।
उसने सबके पहले जाने के लिए पैर बढ़ाया, और चला। वहां
जब पहुंचा, तो उस दृश्य को देखकर घबड़ा गया, और हीरा से
कहा---हाथ ढीला कर; जब यह छोड़ने लगे, तब गोली मारूँ,
नहीं तो सम्भव है कि तुम्ही को लग जाय ।
हीरा---नहीं, तुम गोली मारो।
रामू---तुम छोड़ो तो मैं वार करूं ।
हीरा---नहीं,यह अच्छा नहीं होगा।
रामू---तुम उसे छोड़ो, मैं अभी मारता हूं।
हीरा---नहीं, तुम वार करो।