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छाया
१६
 


निकला । राजा साहब ने उस पर वार किया। गोली लगी, पर चमड़े को छेदती हुई पार हो गई;इससे वह जानवर भागकर निकल गया । अब तो राजा साहब बहुत ही दुःखित हुए। हीरा को बुलाकर कहा---क्यों जी, यह जानवर नही मिलेगा?

उस वीर कोल ने कहा---क्यों नही ?

इतना कहकर वह उसी ओर चला । झाड़ी मे जहां वह चीता घाव से व्याकुल बैठा हुआ था, वहा पहुंचकर उसने देखना आरंभ किया । क्रोध से भरा हुआ चीता उस कोल-युवक को देखते ही झपटा । युवक असावधानी के कारण वार न कर सका, पर दोनों हाथों से उस भयानक जन्तु की गर्दन को पकड़ लिया, और उसने भी इसके कंधे पर अपने दोनों पंजों को जमा दिया।

दोनों में बल-प्रयोग होने लगा। थोड़ी देर में दोनों जमीन पर लेट गये।


यह बात राजा साहब को विदित हुई । उन्होंने उसकी मदद के लिए कोलो को जाने की आज्ञा दी। रामू उस अवसर पर था । उसने सबके पहले जाने के लिए पैर बढ़ाया, और चला। वहां जब पहुंचा, तो उस दृश्य को देखकर घबड़ा गया, और हीरा से कहा---हाथ ढीला कर; जब यह छोड़ने लगे, तब गोली मारूँ, नहीं तो सम्भव है कि तुम्ही को लग जाय ।

हीरा---नहीं, तुम गोली मारो।

रामू---तुम छोड़ो तो मैं वार करूं ।

हीरा---नहीं,यह अच्छा नहीं होगा।

रामू---तुम उसे छोड़ो, मैं अभी मारता हूं।

हीरा---नहीं, तुम वार करो।