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ग्राम
 


खिलाकर तथा उसके पास बैठे हुए लडकों को भी कुछ देकर उसी क्षुद्र-कुटीराभिमुख गमन करने लगी । मोहनलाल उस सरला बालिका के पीछे चले।

उस क्षुद्र कुटीर में पहुंचने पर एक स्त्री मोहनलाल को दिखाई पड़ी जिसकी अंगप्रभा स्वर्ण-तुल्य थी, तेजोमय मुख-मंडल, तथा ईषत् उन्नत अधर अभिमान से भरे हुए थे, अवस्था उसकी ५० वर्ष से अधिक थी। मोहनलाल की आन्तरिक अवस्था,जो ग्राम्यजीवन देखने से कुछ बदल चुकी थी, उस सरल गम्भीर तेजोमय मूर्ति को देख और भी सरल विनययुक्त हो गयी । उसने झुककर प्रणाम किया । स्त्री ने आशीर्वाद दिया और पूछा-बेटा!कहां से आते हो?

मोहन०-मै कुसुमपुर जाता था, किन्तु रास्ता भूल गया.... 'कुसुमपुर' का नाम सुनते ही स्त्री का मुख-मंडल आरक्तिम हो गया और उसके नेत्र से दो बूंद आंसू निकल आये। वे अश्रु करुणा के नहीं, किन्तु अभिमान के थे।

मोहनलाल आश्चर्यान्वित होकर देख रहे थे। उन्होने पूछा---आपको कुसुमपुर के नाम से क्षोभ क्यों हुआ ?

स्त्री---बेटा ! उसकी बड़ी कथा है, तुम सुनकर क्या करोगे !

मोहन०-- नही. मै सुनना चाहता हूं, यदि आप कृपा करके सुनावें।

स्त्री---अच्छा, कुछ जलपान कर लो, तब सुनाऊँगी। पुनः बालिका की ओर देखकर स्त्री ने कहा---कुछ जल पीने को ले आओ।