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छाया
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पा तुम्हें बन्दी नहीं करना चाहता, तुम ससैन्य स्वतंत्र हो । यदि इच्छा हो, तो युद्ध करो । चित्तौर-दुर्ग राणा-वंश का है । यदि हमारा होगा, तो एकलिंग-भगवान की कृपा से उसे हम हस्तगत करेंगे ही।

दुर्ग-रक्षक ने कुछ सोचकर कहा---भगवान की इच्छा है कि आपको आपका पैतृक दुर्ग मिले, उसे कौन रोक सकता है?सम्भव है कि इसमें राजपूतों की भलाई हो। इससे बन्धुओं का रक्तपात हम नहीं कराना चाहते । आपको चित्तौर का सिंहासन सुखद हो, देश की श्री-वृद्धि हो, हिन्दुओं का सूर्य मेवाड़-गगन में एकबार.फिर उदित हो । भील, राजपूत, शत्रुओं ने मिलकर महाराणा का जय-नाद किया, दुन्दुभी बज उठी । मंगल-गान के साथ सपत्नीक हम्मीर पैतृक सिंहासन पर आसीन हुए । अभिवादन ग्रहण कर लेने पर महाराणा ने महिषी से कहा--क्या अब भी तुम कहोगी कि तुम हमारे योग्य नहीं हो ?