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गुलाम
 


माफ कर ! या तो अपने हाथों से मुझे कत्ल कर डाल ! मगर इतनी बेइज्जती न कर !

गुलाम---अच्छा, वह तो किया ही जयागा, ! मगर खजाना कहाँ है ?

शाह०---कादिर ! मेरे पास कुछ नहीं है !

गुलाम---अच्छा, तो उतर आएँ तख्त से, देर नाकरे!

शाह०---कादिर ! मै इसी पर बैठा हूँ जिस पर बैठकर तुझे रक्म दिया करता था । आ, इसी जगह खंजर से मेरा काम तमाम कर दे।

'वही होगा' कहता हुआ नर-पिशाच कादिर तख्त की ओर बढ़ा। बूढ़े बादशाह को तख्त से घसीटकर नीचे ले आया और उन्हें पटककर छाती पर चढ़ बैठा । खंजर की नोक कलेजे पर रखकर कहने लगा, अब भी अपना खजाना बताओ, तो जान सलामत बच जायगी।

शाहआलम गिड़गिड़ाकर कहने लगे कि ऐसी जिन्दगी की‌ जरूरत नहीं है । अब तू अपना खंजर कलेजे के पार कर !

कादिर---लेकिन इससे क्या होगा! अगर तुम मर जाओगे, तो मेरे कलेजे की आग किसे झुलसायेगी। इससे बेहतर है कि मुझसे जैसी चीज छीन ली गयी है, उसी तरह की कोई चीज तुम्हारी भी ली जाय । हां, इन्हीं आंखों से मेरी खूबसूरती देखकर तुमने मुझे दुनिया के किसी काम का न रक्खा । लो, मै तुम्हारी आंखें निकालता हूँ, जिससे मेरा कलेजा कुछ ठंडा होगा।

इतना कह, कादिर ने कटार से शाहआलम की दोनों आंखें निकाल लीं। रोशनी की जगह उन गड्ढ़ों से रक्त के फहारे निकलने लगे। निकली हुई आंखों को कादिर की आंखें प्रसन्नता से देखने लगीं।