पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१०४

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(१०४) जगविनोद । अथ अपस्मारका उदाहरण-सर्वया ॥ जाछिमते छिन सांवरे रावरे लागेकटाक्षक अनियारे । त्यों पदमाकरताछिनते तियसों अंगअंगनजात सम्हारे । कैहिपहायलघायलसी घनमिगिरीपरै प्रेम तिहारे । नैनगयेफिरफेनबहैमुखचैनरह्यो नेहि मैनके मारे ॥ ८७ ॥ दोहा--लखि बिहाल एकै कहत, भई कहूं भयभीत । यकै कहत मिरगी लगी,लगी न जानत प्रीत॥८८॥ अति डरते अति नेह ते, जु उठि चालियतुवेग । ताही सों सब कहत हैं, संचारी आवेग ॥ ८२ ॥ अथ आवेग वर्णन ॥ कविस--आई संग अलिन के ननद पठाई नीठ, सोहन सोहाई सो सई डरी सुपट की। कहै पदमाकर गंभीर यमुनाके तीर, लागी घट भरन नदेली नेह अटकी । ताहि समय मोहन सुबासुरी बजाई तामें, मधुर मलार गई ओर बंशीवट की। तानलगे लटकी रही न सुधि बूँघुटकी, घटकी न अवघट बाटकी न घटकी ॥ १० ॥ दोहा-सुनि आहट पिय पगनिको, रभरि भनी यों नारि । कहुंके कर कहु किंकिणी, कहूं सुनूपुर डारि ॥११॥ जहां कौनहूं अहितते, उपजत कछुभय आय । ताहीको नितत्रामकहि, वर्णतहैं कविराय ॥ ९२ ॥