पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१०९

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- जगद्विनोद । (१०९) अब हासका वर्णन || पुनर्यथा-सवैया ॥ चन्द्रकला चुनि चूनरी चारु दई पहिराय सुनायसुहोरी बेंदीविशाखारचीपदमाकर अंजन आँजि समाजिकैरोरी लागीजबै ललितापहिरावन कान्हकीकंचुकीकेसर बोरी होरहरे मुसकाइरही अँचरामुख दै वृषभानु किशोरी ९ दोहा-विवश न बज वनितानके, सखि मोहन मृदुकाय । चीर चोरि सुकदम्ब पै कछुकरहे मुसक्याय १० अहित लाभ हित हानि ते, कटु जु हिये दुखहोत । भोक सुथायी भाव है, कहत कविनको गोत ११ अथ शोकका उदाहरण-सवैया ।। मोहिं नशोच इतौतन प्राणको जायरहैकिलहैलघुताई । येहु न शोच घनो पदमाकर साहिबीजोपैसुकण्ठहीपाई शोच इहै इकबाल बधू बिन देहिंगो अंगद को युवराई यों वचवेलिवधूके सुने करुणाकर को करुणा कछुआई दोहा-बाम कामकी खसमकी, : भस्म लगावत अंग । त्रिनयनके नैननि जम्पो, कछु करुणाको रंग १३ रिपुकत अपमानादि ते, परमित चित्तविकार । जु प्रतिकूल हिय हर्षको, वहै क्रोध निरधार । अथ क्रोधका उदाहरण || कवित्त-नहत बिहद्द नृप रामदल बद्दलमें, ऐसो एकहौंही. कहे पदमाकर चहै. तो चहुँचक्रनको, दुष्टदानव' दलनहौं ।