पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/११५

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॥ जगद्विनोद (११५) पदमाकर चांदनी चंदहूके कछू और हिडौरनच्वैगये हैं । मनमोहन सों बिछुरे इतही बनिकै न अबै दिनद्वैगयेहैं सखि वे हम वेतुम वेई बनप कछूके कछ मन बैगये हैं १५ पुनर्यथा-सवैया ॥ धीर समीर सुतरि ते तीछन ईछन कैसहु ना सहतीमें । त्योपदमाकरचांदनीचन्द चितैचहुँओरनचौंकतीजीमें छाय बिछाय पुरैनकेपातनलेटती चन्दन की चौकीमें नीचकहा विरहा करतो सखि होती कहूँजोपैमीचुमुठीमें पुनर्यथा --सवैया ॥ ऐसी न देखीसुनीसजनीधनीबाढत जातवियोगकीबाधा । त्यों पदमाकर मोहनको तबते कलहै नकहूँ पल आधा । लाल गुलाल घलापल म गठोंकरदैगईरूपअगाधा। कैगई कैगई चेटकसी मनलैगईलैगईलैगई राधा ॥ १७ ॥ दोहा-अटकि रहे किन काम रत, नागर नन्दकिशोर । करहुँ कहा पीकन लगे, पिक पापी चहुँओर १८ त्रिविध वियोग शृंगार यह, इक पूरबअनुराग । वर्णतमानप्रवास पुनि, निरखिनेहकीलाग ॥ १९ ॥ होत मिलनते प्रथमहीं, व्याकुलता उर आनि । सो पूरब अनुरागहै, वर्णत कवि रसखानि ॥२०॥ पूर्वानुरागका उदाहरण पुनर्यथा ॥ कवित्त-जैसी छबिश्यामकीपगीहै तेरी आँखिनमें, ऐसी छवि तेरी श्याम आँखनपगी रहै ।