जगदिनोद । (१२१) इन्दु ते अधिक अरविन्ददे अधिक ऐसो, आनन गोविन्दको निहारिबोई करिये ॥ ४६॥ दोहा-पिय आगमते अगमनहिं, कार बैठी तियमान । कबधौं आइ मनाइहैं, यही रही धार ध्यान ॥४७॥ करै विरहमें जो जहां, पियगुण गुणन बखान । ताहीको गुण कथनकहि, वर्णत सुकवि सुजान ।। गुणकथनका उदाहरण ॥ कवित्त-हौंहूंगई जान तितआइगो कहूंते कान्ह आनि बनितानहूंको झमकि झलौगयो । कहै पदमाकर अनंगकी उमंगनिसों, अंग अंग मेरे भरि नेहको छलौगयो । ठानि बज ठाकुर ठगोरिनकी ठेलाठेल, मेलाकै मझार हित हेलाकै भलो गयो। छाहकै छला छ्बै छौगुनी छबै छरा छोरनछ्दै, छलिया छबीली छैल छाती छुबै चलोगयो॥४९॥ पुनर्यथा-सवैया ॥ चोरन गोरिनमें मिलिकैइतै आईही हाल गुवालकहांकी कौन विलोकिरह्योपदनाकर वातियकीअवलोकनिबांकी धौरअबीरकी धुंधुरिमें कछुफेरसों कैमुख फेरकै झांकी । कैगई काटि करेजनिके कतरे कतरे पतरेकरिहांकी ॥५०॥ दोहा-गुणवारे गोपालके, कार गुण गणनि बखान इक आपहिके आसरे, राख ति राधा पान ॥ ५ ॥
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