पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१२५

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जगदिनोद । (१२५) हँसि हँसि गोपी फिर हँसै, मनहुँ पियेसी भांग ॥ अथ करुणारस लक्षण । दोहा-आलम्बन प्रियको मरण, उद्दीपन दाहादि । थायी जाको शोक जहँ, वहै करुणरस यादि ॥ रोदति महिपति नादिजहँ, वर्णतकविअनुभाव । निरखेदादिक जानिये, तहँ संचारी भाव ॥६८॥ चित्रबधू तरके वरण, वरुण देवता जान । या विधि को या करुणरस, वर्णतकविकवितान॥ करुणारसका उदाहरण ॥ कवित्त--आंसुन अन्हाय हाय हाय कै कहत सब, औध पुरवासी के कहायो दुःख दाहिये । कहै पदमाकर जलूस युवराजी कोसु, ऐसो को धनी है जाय जाके शीश वाहिये । सुतके पयान दशरथ ने तजे जो प्रान, बढ्यो शोकसिंधुसो कहांलौं अवगाहिये । मूढ़ मंथराके कहे बनको जो भजे राम, ऐसी यह बात कैकेयी को तो नचाहिये ॥ ७० ॥ दोहा-राम भरत मुख मरण सुनि, दशरथके मनमाह । महिपरभै रोदत उचरि, हा पितु हा नरनाँह ॥७॥ अथ रौद्ररस थायीवणन ॥ दोहा-थाया जाको क्रोध अति, वहै रौद्र रस नाम । आलम्बन रिपु रिपु उमड़, उद्दीपन तिहिंठाम ॥