पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१३०

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(१३०) जगदिनोद। अथ धर्मवीरका उदाहरण ॥ कवित्त-तणके समान धनधान राज त्यागकार, पाल्यो पितु वचन जो जानत जनैया है । कहै पदमाकर विवेकही को बानो बीच, सोचो सत्य वीर धीर धीरज धरैयाहै ॥ सुमृतिपुराण वेद आगम कह्यो जो पंथ, आचरत सोई शुद्ध करम करैया है । मोद मति मंदर पुरंदर महीको धन्य, धरम धुरंधर हमारो रघुरैया है ॥ ९६ ॥ दोहा- धारि जटा बल्कल भरत,गन्यो न दुख तजिराज । भे पूजत प्रभु पादुकन, परम धर्मके काज ९७॥ अथ भयानक वर्णन ॥ दोहा-जाको थाई भाव भय वहै भयानक जान । लषण भयंकर गजब कछु,ते विभाव उर आन || कम्पादिक अनुभाव तह, संचारी गोहादि। कालदेव कैलावरण सुभयानक रसयादि ।। ९९ ॥ अथ भयानक उदाहरण ॥ पुनर्यथा ॥ कवित-झलकत आई झुंड झिलम झलानि झप्यो, तमकत आवै तेग वाही औ शिलाहीहै। कहै पदमाकर त्यों दुन्दुभि धुकार सुनि, अब बक बोलै. यों गलीम और गुनाही ।। माधवको लालं कालहू ते विकराल दल, .