पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१२९

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जगद्विनोंद। ( १२९) षोडशहू दीन्हें महादान अधिकारीको । ग्राम दये धाम दये अमित अराम दये, अन्न जल दीने जगतीके जीवधारीको । दाता जयसिंह दोय बातें तो न दीनी कहूँ, वैरिनको पीठि और डोठि परनारीको ॥ ९ ॥ पुनर्यथा ॥ कविन-सम्पति सुमेरकी कुवेरकी जु पावे ताहि, तुरत लुटावत विलम्ब उर धारै ना । कहै पदमाकर सुहेम हय हाथिन के, हलके हजारनके वितर विचारै ना ॥ गंज गज बकश महीप रघुनाथ राय, याहि गज धोखे कहूं काहू देइ डारै ना ॥ याही डर गिरिजा गजाननको गोइ रही, गिरिते गरेते निज गोदते उतारै ना ९२ होहा-दै डारै जनु भिक्षुकनि,हनि रावणहिंसुलंक । प्रथम मिल्यो याते प्रभुहि, सुविभीषणद्वैरंक ९३॥ अथ धर्मवीर वर्णन ॥ हा-धर्मवीरके कवि कहत, ये विभाव उर आन । वेद सुमृति शीलन सदा,पुनि पुनि सुनब पुरान॥ वेद विहित कम वचन वपु,औरहु है अनुभाव । धृति आदिक वर्णत सुकवि,तहँ संचारी भाव ॥ .