(१४) जगदिनोद। उर उदास रतिते रहै, अति आदरकी खानि । प्रौढाधीरा नायका, ताहि लीजिपत जानि ॥ ६४॥ अय प्रौडा अधीरा उदाहरण । कवित्त--जगर मगर युति दूना केलि मंदिर में, बगर बगर धूप अगर बगारयो तू । कहै पदमाकर त्यो चन्द्रते चटकदार, चुम्बनमें चारुमुख चन्द्र अनुसारचो तू । नैननमें बैननमें सखी और सैननमें, जहां देखो तहाँ प्रेम पूरण पसारयो तू । छपत छपाये तऊ छउन छबीली अब, उर लगियेकी चार हारना उतारचो तू ॥६५॥ दोहा--दरश दो रिय पगारति, आदर कियो अछेह । देह गेहपति जानिगो, निरखि चौगुनो नेह ॥६६॥ का तरजन तावन कछू, करि जु जनावे रोष । पांढ अधीरा नायका, निरखि नाहको दोष ॥६॥ अथ प्रौढा अधीराका उदाहरण ॥ कविन-रोष कार पकार परोसते लिआई घरै, पोको प्राणप्यारी भुज लवनि मेरै भरै । कहैं पदमाकर ये ऐसो दोष को जो फिर, सीखन सीप यो सुनापति खरै खरै। प्योछल छमात्रै बात हंसि बहरा तिम, गदगद कण्ठ हग आंसुन झरै झरै।
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