पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१३

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जगादिनोद। (१३) कहै पदमाकर सु गोरे रंग बोरे दृग, थोरे थोरे अजब कुसुंभी फरी लाये हो । आगेको धरत पर पीछेको परत पग, भोरहीते आज कछु और छवि छाये हो। कहां आये तेरे धाम कौन काम घर जाउ, जाउँ कहां श्याम जहां मन धीर आयेही ॥५९|| दोहा--दाहक नाहक नाह मोहि, करिहौं कहा मनाय । सुवश भये जा तीयके, ताके परसहु पांय ।। ६० ॥ धीर वचन कहिकै जो तिय, रोप जनावत रोष । मध्या धीरा धीर तिय, ताहि कहत निर्दोष ॥६॥ अथ मध्या धीराका उदाहरण ।। कवित्त--रावलि कहा हो किन कहत हो काते अरी, रोष तज रोषक कियो मैं का अचाहेकी । कहै पदमाकर यहै तो दुख दूर करा, दोष न कछु है तुम्हें नेह निरवाहेको । तोपै इति रोवति कहा है कहौं कौन आगे, मेरेई जु आगे किये आसुन उमाहे को। कोही मैं तिहारी बूतो मेरी प्राणप्यारा आजु, होती जो पियारी तौ बरोती कहौ काहेको ॥६२॥ दोहा-कार आदर तिय पीयको, देखि गन अलसानि । समुख मोरि वर्षनलगी, लै उसाँस अँसुवानि ॥१३॥