पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

, (२२) जगद्विनोद । कासकलित बलि वामको, वहां तनिक बिसराम।।८॥ सुनत खत चितचाहकी. बातभांति अभिरामः। मुदितहोय जो नायका, ताको मुदिता नाम ॥ ९ ॥ अथ मुदिताका उदाहरण ॥ कवित्त-वृन्दावन बीथिन बिलोकन गईही जहां राजत रसाल बन तालरु तमालको । कहै पदमाकर निहारत बन्योई तहां, नेहनिको नेम प्रेम अदभुत ख्यालको ॥ दूनो दूनो बाढ़त सुपूनोंकी निशामें अहो, आनंद अनूप रूप काहू बजबालको । कुअत कहूको सुनो कंतको गमन लखि, आगमन तेसो मनहरण गोपालको ॥१०॥ दोहा--परखि प्रेमवश परपुरुष, हरषि रही मनमैन । तबलगि झुकि आईघटा, अधिक अधेरीरैन॥११॥ कही सु अनुशयना त्रिविध, प्रथमभेद यहजानि॥ वर्तमान संकेतके, निघटनके सुखहानि ॥१२॥ पहिली अनुशयनाका उदाहरण ॥ कवित्त-सुनेपर परम परोसीके सुजान तिया, काई सुनि सुनिकै परोसिन मनो अराति । कहै पदमाकर सुकञ्चन लतासी लचि, ऊँची लेत श्वास वा हियेमें त्यों नहींसमाति॥ आइआई जहां तहाँ बैठि जैसे तैसे 7