पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/२१

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जगद्विनोद । (२१) अथ लक्षिताका उदाहरण ॥ ॥ सवैया॥ जनमण्डलीदोष सबै पदमाकर वैरही यों चुपचापरी है। मनमोहनकी बहियां में छुटी उपटीयहबेनीदेखापरी है । मकराकतकुण्डलकी झलकी इतहूभुजमूलपैछापरी है। इनकी उनसोंजोलगीं अँखियां कहियेतो कछूहमैकापरी है। पुनर्यथा सवैया ॥ बीतवहीसुतौवीतचुकी अब आंजती होकिहिकाजलकंजन । त्योपदमाकरहालकहेम तिलाल करौ दृगख्यालके खंजन ॥ रेखतकचुकीकेंचुकीके बिच होत छिपाये कहा कुचकंजन । तोहिंकलंक लगाइबेकोलग्यो कान्हहीके अधरानमें अंजन ॥ दोहा--धरकत कत हेमन्तऋतु, रीति कहो कह जात । अपने बश सोवन लगी, भली नहीं यह बात ॥५॥ जो बहुलोगन सों जु तिय, राखति रतिकी चाह । कुलटा ताहि बखानहीं, जे कबीनके नाह ॥ ६ ॥ अथ कुलटाका उदाहरण ।। ॥ सवैया ॥ यों अलबेलीअकेली कहूंसुकुमार शृंगारनकैचलैकैचलै। त्यों पदमाकर एकनकेउरमेरसबीजनि वै चलै वै चलै ॥ एकनसों बतरायकछिनएकनकोमन लै चलै लैचलै। एकनकोतकियूँघटमेंमुखमोरिकनैखिन दैचलै दैचलै ॥७॥ दोहा-विपिन बाग बीथी जहां, प्रबल पुरुष मय माम ।