पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/३०

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, (३०) जगदिनोद। दोहा-वर्षतमेह अछेह अवि, अवनि रही जलपूरि । पथिक तऊ तुव गेह तो, उठत भभूरनधूरि ॥५१॥ परकीया प्रोषित पतिका उदमाक्न सवैया ॥ न्योने गये नंदलाल कहूंसुनिवाबीलगवियोगकीरी । ऊतरु कौनहूं कै पदमाकर दै फिार कुन गलीनमें फेरी ॥ पावै न चैनसुमैनके बाननि होत छिनै छिन छीनघनेरी । बुझैजु कन्त कहै तो यहै तिय पाउँ पिरातहै पांसुरीमेरी ॥ दोहा-व्यथित वियोगिनि एक तू, यो दुख सहत न कोई ननँद तिहारे कन्तको, पन्थ क्लिोकति जोइ ५३ अथ गणिका प्रोषितपतिकाका उदाहरण-सवैया ॥ बीर अबीर अभीरनको दुखभाषै बनै न बनै विनभाखै । न्यों पदमाकर मोहन मीतके पायसँदेश न आठयेपावै ॥ आयेन आपनपातीलिखीमनकीमनहीं रही अभिलाखै । शीतके अन्त बसन्तलग्यो अब कोनकेआगेबसन्तलै राखै ॥ दोहा-पग अंकुश करमें कमल, कारिजु दियो करवार । सुसखिसफल है है तबहिं, जब ऐहैं घरयार॥५५॥ अनत रमें रचि चिह्न ललि, पीतमके शुभमात । दुखित होइ सो खण्डिता, वर्णत मति अवदात ॥ मुग्धखण्डिता का उदाहरण ॥ कविन-बैठी परयंक पै नवेली निरशंक जहा, जागी ज्योति जाहिर जवाहिरको जागै ज्यो । कहै पदमाकर कहूं 'नन्दनन्दनहूं,