पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/३२

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3 (३२) जगद्विनोद। अमल कपोलन पै किन पान पीके हैं । ऐभो अवलोकिबेई लायक मुखारविन्द, जाहि लखि चन्द अरविन्द होत फीके हैं । प्रेमरस पागि जागि आये अनुराग याते, अब हम जानीकी हमारे भाग नीके हैं ॥६॥ दोहा-ताकि रहत छिन और तिय, लेत औरको नाउँ, ये बलिऐसे बलमकी, विविधभाँति बलि जाउँ॥ ६२॥ अथ परकीया खंडिताका उदाहरण ॥ कवित्त-एहो बज ठाकुर ठगोरी डार कीन्हीं तब, बोरी बिनकाज अब ताकी लाज मारये । कहै पदमाकर एतेपै यो रंगीलो रूप, देखे बिन देखे कहो कैसे धीर धरिये ॥ अंकहु न लागी पै कलंकिनी कहाई याते, अरज हमारी एक यही अनुसारये । सांझके सवेरे दिन दशये दिवारी फाग, कबहूँ भलेजू भलै आइवो तो कारये॥६३॥ पुनयथा -सवैया ॥ सीख नमानीसयानी सखीन कियो पदमाकरकी अमनकी । प्रीति करी तुमसों बजिकै सुबिसारि करी तुम प्रीति घनेकी ॥ रावरीरीतिलखी इमि सांवरे होति है सम्पति जो सपनेकी । सांचहूताको नहोत भलो जो न मानत है कही चारि जनेकी ।