जगद्विनोद । (३५) कहै पदमाकर वै रुठिगे सु ऐसी भई, नैननते नोंद गई हाइके दबारे सों ॥ रैन दिन चैनहै न मैनहै हमारे बश, ऐन मुख सूखत उसाँस अनुसारे सों। प्राणनकी हानिसी दिखानसी लगी है हाइ, कोन गुन जान मानकीन्होंमाणप्यारेसों ॥४॥ दोहा-घन घमण्ड पावम निशा, सरवर लग्यो सुखान । परवि प्राणपति जानिगो, तज्योमाननीमान ७५ अथ परकीया कलहांतरिताका उदाहरण || सवैया ।। कासों कहा मैं कहों दुखयोमुखसखतईहै पियूषपियेते । न्यों पदमाकर यों उपहासकोत्रासमिटैनउसाँसलियेते ॥ व्यापै व्यथायह जानि परीमनमोहनमीतसोमान कियेते । भूलिहूं चूक परी जो कहूंतिहिचककोहूकनजातहियेते ॥ दोहा-मोहनमीत सभीत गो, लखि तेरा सनमान । अब सुदगादै तू चल्यो, अरे मुबई मान ॥७७।। अथ गणिका कलहांतरिता का उदाहरण ॥ सवैया ॥ हरिके हार हजारन को धन देशहुते सुखसे सरसाने हौं न लियो पदमाकरत्याअरबेकिनबेलि सुधारसमाने । बे चलिह्यांते गये अनतैहमका अवापनीवातबखाने । आपने हाथमोंआपनेपायपैपाथरपारिपरयो पछिताने ।
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