जगद्विनोद । दोहा-कहा देखि दुखि दाहिये, कुमतिकछू जो कीन । छैल छगूनी छोरिते, छलानिलीनो छीन ॥७९॥ विप्रलब्धाका लक्षण ॥ दोहा-पिय विहीन संकेत लखि, जो तिय अतिअकुलाय । ताहि विपलब्धा कहत, सुकपिनके समुदाय ॥८॥ अथ मुग्धविप्रलब्धाका उदाहरण । कवित-खेलको बहानो के सहेलिन के संम चलि, आई केलि मन्दिर लों सुन्दर मजेज पर। कहै पदमाकर तहां न पिय पाके तिय, त्योंहीं तन तैरही तमीपति के तेहपर ॥ बाढ़त व्यथाकी कथा काहू सों कछू न कहीं, लचकि लतालों गई लाजही की जेलपर । बोरी परी बिथर कपोल पर पीरी परी, धीरी परी धायगिरी सीरी परी सेजपर ॥८१ दोहा-नवल मूजरी ऊपरी, निरखि ऊजरी सेज । उदित उजेरी रैनको, कहि न सकतकछु तेज ८२ अथ मध्या बिपलब्धाका उदाहरण || कवित्त-पूर अँसुवानको रह्यो जो पूरि आँखिन में, बाहन बह्यो पै चढ़ि बाहिरी बहै नहीं। कहै पदमाकर, सुधोखेहु न माल तरु, चाहत, मह्यो पै गहवर है गहै नहीं ॥ कांपि कदलीलो या अलीको अवलम्बकहूं,
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