पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/३९

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जगद्विनोद । (३९) कोचैतकैइहचांदनीते अलियाहिनिबाहिव्यथा अबलोच । लोचैपरीसियरीपर्यकप बीती बरीन खरीखरीशोचै ॥९॥ दोहा--अरे सु मो मन बावरे, इतहि कहा अकुलात। अटकिअटाकितपतिरह्यो तितहि क्यों न चलिजात ॥ मया उक्ता -सवैया ॥ आयेनकन्तकहांधौरहे भयोभोर चहै निशिजातिसिरानी। योपदमाकरबूझ्योचहै परबूझिसकै नसकोच कीसानी ॥ धारिसकैनउतारिसकै सुनिहारिश्रृंगार हिये हहरानी। शूलसेफूललगैफरपै तियफूलछीसी परीमुरझानी ॥ १४ ॥ दोहा--अनत रहे रमि कन्तक्यों, यह बूझनके चाय । सुमुखि सखीके श्रवणसों, मुख लगाय रहिजाय ॥ अथ प्रौढा उक्ताका उदाहरण ॥ कविन-सौतिनके त्रासते रहे धौ और बानते, न आये कोन गासतेप्यो करु नौल्लास। कहै पदमाकर सुबास ते जवास तेसु, फूलनकी रासते जगीहै महासागते॥ चांदनी बिकासते सुधाकर प्रकाशते न, राखत हुलासते न लाउ खसखासते। पौन करु आशते न जाउ उड़ि वासते, अरी गुलाबपासते उठाउ आस पास ॥१.६॥