पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/४०

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(४०) जगद्विनोद। दोहा-कियहुँ न मैं कबहूं कलह, गह्यो न कबहूं मौन । पिय अबलौं आये न कत, भयो सुकारण कौन । परकीया उक्ता ॥ कवित्त --फागुन में फागुन बिचारि ना देखाई देत, एती बेर लाई उन कानन में नाइ आव । कहै पदमाकर हितू जो तू हमारी है तो, हमारे कहे बीर बहि धाम लगि धाये आव ॥ जोर जो धरी है वेदरद द्वारे तो न होरी, मेरी विरहाग ली उलूकनि लौं लाय आव । एरी इन नयननकी नीरमें अबीर घोरि, बोरिपिचकारी चितचोरपै चलाय आव ।। ९८ । ९८॥ दोहा--तजत गेह अरु गेह पति, मोहिं न लगी विलम्ब । हरिविलम्बलाईसुकत, क्योंनहिंकहतकदम्ब ॥९९। गणिका उक्ता--सर्व --सवैया ॥ काहूकियोधौंकहूंक्शभावतो, काहू कहूंधौंकछूछलछायो त्योपदमाकरतानतरंगिनि, काहूकि धौरचिरंगरिझायो । जानिपरैनकछूगतिआजकोजाहितयेतोबिलंब लगायो । मोहनमोमनमोहिबेको किधौ मो मनकोमनिहारन पायो । दोहा-कहतसखिनसोंशशिमुखी, सजिस जिसकल शृंगार मोमन अटक्योहारमें, अटकिरह्योकितयार ॥ १ । -