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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/४१

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जगद्विनोद। (४१) साजहि सेज शृंगार तिय, पियमिलापकेकाज ॥ वासकसज्जानायका, बाहिकहतकविराज ॥२॥ मुग्धा वासकसज्जा ॥ 1 कवित्त-सोरह श्रृंगार को नवेली के सहेलिनहूं, कीन्हीं केलिमन्दिरमें कलपित केरे हैं। कहै पदमाकर सु पासही गुलाबपास, खासे खसखास खसबोइनके ढेरे हैं। त्यों गुलाब नीरनसों हरिनके होज भरे, दम्पति मिलाप हित आरती उजेरे हैं। चोखी चांदनीन पर चौसर चमेलिन के, चन्दनकी चौकी चारु चांदीके चंगेरे हैं ॥३॥ दोहा--साजिसैन भूषण वसन; सबकी नजर बचाय ॥ रही पौढ़ि मिस नींदके, दृगदुवारसेलाय ॥ ४ ॥ मध्यावासकसज्जा॥ कवित्त-सजिबजबाल नन्दलालसों मिलैकैलिये, लगनिलगालगीमें लमकि लमकि उठै । कहै पदमाकर बिराक ऐसी चाँदनीसी, चारोंओरचौकनि में चमकिचमकि उठै ॥ झकिझकि झमि झुमि झिल झिल झेल झेल, झरहरी झांपनमें झमकि झमकि उठे।