पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/४४

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जगद्विनोद । वाहीकोगह निते सु नाही की कहनि आयो, नाहींकी कहनि ते सु नाहीं निकसत है ॥१४॥ पुनर्यथा सवैया । कबहूं फिर पांवनदेहौंयहांभजिजहौं तहां जहां सुधीसही। पदमाकर देहरीद्वारे किंवार लगे ललचहौ न ऐसी चहौ ॥ बहियांजुकही छहियां नहिंनेकहु छुवैपावहुगेलहु लाजलहौ । चितचाहैं कहाँ बसियां उनही उतहीरहो हाहाहर्मेन गहौ १५ पुनर्यथा सवैया ॥ सतरैबोकरोवतरैबोकरोइतरैबोकरोकरोजोईचहौ । पदमाकर आनद दोबोकरोरसलीबोकरीसुखसोंउमहो । कछु अन्तरराखो न राखौचहौ परयाबिनतीइकमेरीगहौ । अब ज्योहियमेंनितबैठिरही त्योंदयाकरिकै ढिगबैठिरहौ । दोहा-तुव अयान पन लखि भटू, लटू भये नंदलाल । जब सयानपन देखिहैं, तब धौं कहा हवाल १७॥ अथ मन्या स्वाधीन पतिका-उदाहरण-- --सवैया ॥ ताछिनते रहे और निभूलि सु भूली कदम्बनकी परछाहीं । त्यों पदमाकर संग सखानकी भूलिभूलाय कला अवगाहीं ॥ जा छिनते तू वशीकरमंत्रसीमेली सुकान्हके काननमाहीं । दैगलबाँही जुनाहींकरी वहनाहीं गोपालको भूलतनाही १८॥