पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जगद्विनोद। (४७) बेसकी थोरीकिशोरीहरेहरेया विधि नन्द किशोर पै आई। दोहा-केलिभवन नव बेलिसी, दुलही उलहिइकन्त । बैठिरहाचुपचन्द्रलसि, तुमहिबुलावतकन्त ॥ २९ ॥ अथ मध्याअभिसारिकाका उदाहरण-सवैया । हूलै इतैपर मैन महाउत लाजके आंद परेगथिपॉयन ॥ त्योपद माकर कौन कहै गति माने मनेगनिकोदुखदायन ॥ या अंगअंगकीरोशनीमें शुभ सोसनी चीरचुायोचित चायन जाति चलीबजठाकुरपैठमकाठुमकीठमकीठकुरायन ॥३०॥ दोहा--इक पग धरत सुमन्दमग, इक पग धरति अमन्द ।। चली जाति यहि बिधिसखी.मनमनकरतअनन्द३॥ प्रौढा अमिसारिका-सवैया ॥ कौन है तू कित जातिचलीबलिबीतिनिशाअधरातिप्रमाने । हौं पदमाकर भावतिहौं निज भावतपै अबेही मुहिंजाने ॥ तौ अलबेलि अकेलीडरै किन क्यों डरौ मेरी सहायकेलाने है सखिसंगमनो भवसो भटकानलोबाणशरासनतानै ॥३२॥ पुनर्यथा । कवित्त--चूंघटकी धूमिके सु झूमके जवाहिरके, झिलमिल झालरकी झमिलों झुलतजाद । कहै पदमाकर सुधाकर मुखीके हीर, हारनमें तारनके तोमसे तुलत जात ॥ मन्दमन्दमेकल मतंगलौं चलेई भले, भुजन समेत भुज भूषण दुलत जात ।