पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/५२

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(५२) जगदिनोद। कोउ न ऐसो हितूहमरो जुपरोसिनके पियको गहिराखे । दोहा-ननँद चाहसुनि चलनकी, बाजतक्योंन सुकन्त । आवत वनबिरहीनको, बैरी बधिक बसन्त ॥५४॥ गणिका प्रवत्स्यत्प्रेयसी । सवैया ॥ आँखिनके अँसुवानिहीसों निजधामही धामधराभारीजै हैं । त्यों पदमाकरधीर समीरन धीरधनी कहु क्यों धरिजै हैं । जो तजि मोहिंचलोगेकहूंतोइतीबिरहागिनियां आरंजै हैं । जैहैं कहां कछुरावरेकोहमरेहियको तोहराजारजै हैं ॥५५॥ दोहा-फरत फाम फजियतबडी, चलनचहत यदुराय । को फिरि जाइ रिझाइबो, ध्वनि धमारकोगाय॥५६॥ आवत बलम बिदेशते, हर्षित हो। जु बाम । आगम पत्रिका नायका, ताहिकहत रसधाम ॥५७॥ मुग्धा आगत पतिका ॥ कवित्त-कानि सुनि आयसु सुजान प्राण प्रीतमको, आनि सखियान सजे सुन्दरीके आस पास । कहै पदमाकर सुपनन को हौज हरे, ललित लबालब भरे हैं जल बाँस बाँस ॥ गुदि गैदैगुलगंज गौहर न गज गुल, गुप्त गुलाबी गुलगजरे गुलाब पास । खासे खसबीजन सुखौन पौन खाने खुले, खसके खजाने खसखानेखूबखसखास ॥ ५८॥ 7