पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/५८

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7 (५८) जगद्विनोद । अनुकूल का उदाहरण--सवैया ॥ एकही सेज पै सोवत हैं पदमाकर दोऊ महासुख साने " सापनेमेंतियमानकियोयह देखि पिया अतिही अकुलाने ॥ जागि परे पै तऊ यह जानत पाढ़ि रही हमसों रिस ठाने । प्राणपियारीके पांपरिके करिसौह गरेकीगरे लपटाने ॥ दोहा-मनमोहन तनधन सवन, रमण राधिका मोर । श्रीराधामुखचन्द्रको, गोकुलचन्द्र चकोर ॥ ८८ ॥ अथ दक्षिणका उदाहरण । कवित्तं -देखि पदमाकर गोबिन्दको अनन्द भरी, आई सजि सांझहीहै हरपहिलोरेमें । ये हरि हमारेई हमारे चलो झुलनको, हेमके हिंडोरन झुलानके झकोरे में या बिधि बधूनके सुबैन सुन बनमाली, मृदुमुसुक्याइ कह्या नेहके निहोरेमें । काल्हि चलि झूलैंगे तिहारेई तिहारी सौंह, आज तुम झुलौहौ हमारेई हिंडोरेमें ॥ ८९ ॥ दोहा--निज निज मनके चुनि सबै, फूल लेहु इकबार । यह कहि कान्ह कदम्बकी, हरषि हलाई डार ॥९॥ धरैलाज उरमें न कछु, करै दोष निरशंक । टरै न टारो कैसहूं, कह्यो धृष्ट सकलंक ॥ ९१ ॥ अथ धृष्टका उदाहरण- सवैया ।। दानैफ्ना अपनेमनकी उरआनै न रोपडु दोषदियेको 7 .