पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/५७

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1 जगद्विनोद । (५७) अवलंबनि शृङ्गार को सुजान सुखदाई है ॥ रसिक शिरोमणि सुराग रतनागर है, शील गुण आगर उजागर बड़ाई है । ठौर ठकुराई को जु ठाकुर ठसकदार, नन्दके कन्हाई सो सुनन्दके कन्हाई है ॥८॥ दोहा-दोरे को न बिलोकिबो, रसिक रूप अभिराम सब सुखदायक मांचहू, लखिबेलायक श्याम ॥८॥ नायकके भेद ॥ दोहा-त्रिविध सुनायक पति प्रथम, उपपतिवासक और । जो विधि सों ब्याह्यो तियन, सोई पति सबठौर८२ पतिका उदाहरण ॥ सवैया ॥ मंडपही में फिरै मडरातन जात कहूं तजिनेहकी औनौ । त्यों पदमाकर ताहि सराहत बात कहैं जु कछू कहुं कौनौ । ये बडभागिनी तोसेतुहीं बलि जो लखिरावरोरुपसलौना । व्याहही ते भयेकान्हलटू तब ढहै कहा जब होहिगोगौनौ ॥ दोहा-आई चालि सुशशिमुखी, नख शिखरूप अपार ॥ दिनदिनतिययौवन बढत, छिनछिनतियकोप्यार ॥ सु अनुकूल दक्षिण बहुरि, शठ अरु धृष्टविचार ।। कहैं कविन पति एक के, भेद पेखिकै चार ॥८५॥ जो परवनिताते बिमुख, सानुकूल सुखदानि ॥ जु बहु तियनको सुखदसम, सोदक्षिण गुणखानि ।। , .