सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जगदिनोद । (६१) त्योपदमाकर हैं नतुम्हें सुधिकीनौजोबैरी बसन्तबगारो ।। तातेमिलो मन भावती सों बलिह्यां ते हहाबचमानहमारी कोकिलकी कल बानिसुने पुनिमानरहै गोनकान्हतिहागे दोहा-जगत जुराफा कै नियत, तज्यो तेज निजभान । रूसि रहे तुम पूस में, है यह कौन सयान ॥ ७ ॥ संयुत सुमन सुबेलिसी, सेलीसी गुणग्राम । लसत हवेली सी सुघर, निरखि नवेली बाम ॥ ८॥ वचनचतुरके उदाहरण--सबैया ॥ दाऊननंदबाबा नयशोमति न्योते गयेकहूंलैसँगभारी । हौंहूंइके पदमाकर पौरिमेंसनीपरीबखरीनिशिकारी ॥ देखे न क्यों कढ़ि तेरेसुखेत पै धाइगई छुटि गायहमारी । ग्वालसों बोलि गोपालकह्योसुगुवालिनपै मनमोहनी डारी ।। दोहा-बिजन बाग सकरी गली, भयो अँधेरी आय । कोऊ तोहिं गहै जो इत, तो फिर कहा बसाय॥१०॥ क्रिया चतुरका उदाहरण- सवैया ॥ आइसुन्योतिबुलाईभलोदिनचारिकोजाहि गोपालही भावै । त्यों पदमाकरकाहूकह्यो कैचलोबलिबेगही सासु बुलावै ॥ सो सुनिरोकि सकैक्योंतहां गुरुलोगनसेयहब्योंतबनावै । पाहुनी चा, चल्योजबहीतबहींहार सामुहिंछींकत आवै ॥ दोहा-जल विहार मिस भीर में, लै चुभकी इकबार । दह भीतर मिलि परसपर, दोऊ करत बिहार ॥१२॥