पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/७

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7 जगद्विनोद। (७) मुग्धा तासों कहत हैं, जे प्रवीण रसरंग ॥ २१ ॥ अथ मुग्धाका उदाहरण-सवैया । ये अलिया बलिके अधरानिमें आनि चढ़ी कछुमाधुरईसी । ज्यों पदमाकर माधुरी त्यो कुच दोउनकी चढ़ती उनईसी ॥ ज्यों कुचत्योंहीनितम्बचढ़ेकछुज्योंहीनितम्बत्योंचातुरईसी । आनीन ऐसी चढ़ाचढ़िमें विहिधौकटि बीचहीलूटिलईसी ।। दोहा-कछु गजपतिके आहटनि, छिनछिन छीजतशेर । विधुविकास विकसतकमल, कछू दिननके फेर ॥ पल पल पर पलटन लगे, जाके अङ्ग अनुप । ऐसी इक बजबालको, कहिनहिंसकत स्वरूप ॥२४॥ यह अनुमान प्रमाणियतु, तियतनु यौबन न्योति । ज्यों मेहँदीके पातमें, अलख ललाई होति ॥ २५ ॥ मुग्धा विविध बखानहीं, प्रथमकही अज्ञात । ज्ञात यौवना दूसरी, भाषत मति अवदात ! २६ ॥ जब यौवनको आगमन, जानिपरत नहिं जाहि । सो अज्ञात यौवन तिया, भाषत सुकवि सराहि ॥ अथ अज्ञातयौवनाको उदाहरण । कविस-ये अलि हमैं तो बात गातकी न जानि परे, बझत न काहे यामें कौन कठिनाई है। कहैं पदमाकर क्यों अंग न समात ऑगी, लागी कहा तोहिं जागी उरमें उँचाई है ।