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जगद्विनोद । छहरै छबीन छाम छीटिनकी छोटी है कहे पदमाकर त्यों जेठकी जलाकै तहां, पाव क्यों प्रवेश बेसबेलिनकी बाटी है। बारहू दरीनबीच चारहू तरफ तैसो, वरफ बिछाय तापै शीतल सु पाटी है। गजक अंगूरकी अँगूरसे उँचोहै कुच, आसव अँगूरको अंगुरहीकी टाटी है ॥५०॥ अथ वर्षाऋतु वर्णन कवित्त-मल्लिकान मंजुल मलिन्द मतवारे मिले, मन्द मन्द मारुत मुहीम मनसाकी है। कहै पदमाकर त्यों नदन नदीन तित, नागर नवेलिनकी नजर निशाकी है। रित.. दरेरो देत दादुर सु इंदै दोह, दामिनी दमकनि दिशानि में दसाकी है। बद्दलनि धुन्दनि बिलोको बगुलान बाग, बंगला नवेलिन बहार बरसाकीहै ॥ ५१ ॥ चंचला चमाकै चहूं ओरनते चाह भरी, चरज गईती फेर चरजन लागी री। कहै पदमाकर लवंगनकी लोनी लता, लरज गईती फेर लरजन लागी री॥ कैसे धरो धौर वीर त्रिविधसमीरै तन,