पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/८६

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7 (८६) जगद्विनोद । दोहा--सजि श्रृंगार कुमार तिय, कुटि लघुतम निदराज । लखहु बाह आवत चली, तुमहिमिलन तकि आज ॥ सुनत भावतेकी कथा, भाव प्रगट जहां होत। मोट्टायित वासों कहै, हाव कविनके गीत ॥ ५८ ॥ अथ मोट्टायित हावका उदाहरण--सवैया ।। रूपदुहूँको दुहूंनसुन्यो सुरहैं तबते मानों संग सदाही । ध्यान में दोऊ दुहूंनलखें हर अंगअंग अनंग उछाहीं ॥ मोहिरहे सबके यों दुहूँ पदमाकर और कछू सुधि नाहीं । मोहनको मनमोहनीमें बस्योमोहनीको मनमोहनमाहीं ॥ दोहा--बशीकरन जबते सुन्यो, श्याम तिहारो नाम । दृगनि भुदि मोहित भई, पुलकि पसीजनि बाम ॥ करै निरादर ईठको, निज गुमान ग बाम। कहत हाव बिब्बो कबहुँ, जे कवि मति अभिरामः ॥ अथ शिब्बोके हावका उदाहरण--सवैया ॥ केसररंगमहावरसै सरसै रसरंग अनग चमूके । धूम धमारनको पदमाकर छाय अकाश अबीरकेमूके ॥ फामयोंलाडिलीकीतिहिमेंतुम्हैं लाज न लागत गोप कहूंके । छैलभये छतियांछिरको फिरौकामरीओढे गुलाल केदके ॥ दोहा-रहीं देखि हगद कहा, तुहि न लाज कछु छूत । म बेटी वृषभानुकी, तू अहीरको पूत ।। ६३ ॥ लाजनिवार सक नहीं, पियहि मिलेहू नारि । बिहत हाव तासों सबै, कविजन कहत विचारि ॥ -