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पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/१०२

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चौथा दृश्य
स्थान―महल का बाहरी भाग
[ कालिका दासी के रूप में सरमा आती है ]

सरमा―मैं पति सुख से वञ्चित हूँ। पुत्र भी अमानित होकर रूठ कर चला गया है। जाति के लोगो का निरादर और कुटुम्बियो का तिरस्कार सह कर पेट पालने के लिए अधम दासता कर रही हूँ! तब भी कौन कह रहा है कि 'मैं तुम्हारे साथ हूँ'? जब किसी की सहानुभूति नहीं, जब किसी से सहायता की आशा नहीं, तब भी विश्वास! अन्ध हृदय! तुझे क्या हो गया है? मैं यह भी नहीं जानती कि इस राजकुल में क्या करने के लिये आई हूँ। होगा, मेरा कोई काम होगा। मैं उस अदृष्ट शक्ति का यन्त्र हूँ। वह, जो मेरे साथ है, मुझसे कोई काम कराना चाहता है।

[ प्रमदा का प्रवेश ]

प्रमदा―कलिका! तू यहाँ क्या कर रही है? क्या अभी तक फ्नो शाला में नहीं गई? महारानी तेरी प्रतीक्षा कर रही होंगी।

कलिका (सरमा)―प्रमदा! आज इस समय तू हो काम चला दे। मैं रात को रहूँगी। आज अश्व पूजन होगा। रात भर जागना होगा। नृत्य गीत देखूँँ सुनँगी। मेरी प्यारी बहन, आज मेरा जी बेचैन है।