पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/६

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देखने से यही विदित दोता है कि जनमेजय के विरुद्ध एक भारी षडयन्त्र चल रहा था।

आदि पर्व के पौष्य पर्व अ० ३ से विदित होता है कि जब जनमेजय पर कृत्या और विपत्ति आई, तब उन्होने नाग कन्या से उत्पन्न सोमश्रवा को बड़ी प्रार्थना से अपना पुरोहित बनाया और आसन्न नाग-विद्रोह तथा भीतरी षड्यन्त्रों से बचने के लिये उन्हे अत्यन्त प्रयत्नशील होना पड़ा। नागो ने ब्राह्मणो से सम्बन्ध स्थापित कर लिया था; और इसी कारण वे बलवान होकर अपने गए हुए राज्य का पुनरुद्धार करना चाहते थे। नाग जाति भारत- वर्ष की एक प्राचीन जाति थी जो पहले सरस्वती के तट पर रहती थी। (आदि पर्व; १४०) भरत जाति के क्षत्रियो ने उन्हे वहाँ से खाण्डव बन को और हटाया। खाण्डव में भी वे अर्जुन के कारण न रहने पाए। खाण्डव-दाह के समय में नाग जाति के नेता तक्षक निकल भागे। महाभारत युद्ध के बाद उन्मत्त परी- क्षित ने श्रृङ्गी ऋषि ब्राह्मण का अपमान किया, और तक्षक ने काश्यप आदि से मिल कर आर्य सम्राट परीक्षित का हत्या की। उन्हीं के पुत्र जनमेजय के राज्य प्रारम्भ काल में आये जाति के भक्त उत्तङ्क ने इन बाह्य और आभ्यन्तर कुचक्रो का दमन करने के लिये जनमेजय को उत्तेजित किया। आर्य युवकों के अत्यन्त उत्साह से अनेक आभ्यन्तर विरोध रहते हुए भा नवीन साम्राज्य की रक्षा की गई। श्रीकृष्ण द्वारा सम्पादित नवीन महाभारत साम्राज्य की पुनर्योजना जनमेजय के प्रचण्ड विक्रम और दृढ़