पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/७९

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सातवाँ दृश्य
स्थान―तक्षशिला की एक घाटी
[ आर्य सेना अवरोध किए हुए है। चण्ड भार्गव का प्रवेश। ]

चण्ड भार्गव―वीरो, तुमने आर्यों के प्रचण्ड भुज दण्ड का प्रताप दिखला दिया। सम्राट ने स्कन्धावार से तुम लोगो को बधाई भेजी है। इन पतित और दस्यु अनार्य नागो ने जान लिया कि निष्ठुरता और क्रूरता में भी आर्य शक्ति पीछे नहीं है। वह मित्रो के साथ जितना स्नेह दिखलाती है, उतना ही शत्रुओ को कठोर दण्ड देना भी जानती है। आज के बन्दी कहाँ हैं?

एक सैनिक―अभी लाता हूँ।

[ जाकर वन्दी नागों को ले आता है। ]
 

चण्ड भार्गव―क्यों, अब तुम्हारी क्या कामना है? दौरात्म्य छोड़कर, आर्य साम्राज्य की शान्त प्रजा होकर रहना तुम्हें स्वीकृत है या नहीं? तुम दस्यु वृत्ति छोड़कर सभ्य होना चाहते हो या नहीं?

एक नाग―आर्य सेनापति! दस्यु कौन है, हम या तुम? जो शान्ति प्रिय जनता पर अपना विक्रम दिखाने का अभिमान करता है, जो स्वाहा के मन्त्र पढ़कर गाँव के गाँव जला देना अपना धर्म समझता है, जो एक की प्रतिहिंसा का प्रतिशोध अनेक से लेना चाहता है, वह दुरात्मा है या हम?