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जनमेजय का नाग-यज्ञ

चलो, यज्ञशाला की ओर हो चलें। ( माणवक से ) भाई, तुम कौन हो?

माणवक―यादवी सरमा का पुत्र।

त्रिविक्रम―सरमा तो आज कल जनमेजय के राजमन्दिर मे ही है। वह छिपी हुई है तो क्या हुआ, मैं उसे पहचान गया हूँ।

माणवक―तो फिर मैं भी आप लोगों के साथ ही चलूँगा; एक बार माँ को देखूँगा।

[ सब जाते हैं ]
 
[यवनिका-पतन]




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