पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/८४

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तीसरा अङ्क
पहला दृश्य
[ वेदव्यास ओर जनमेजय ]

जनमेजय―आर्य! मुझे बड़ा आश्चर्य है!

व्यास―वत्स, वह किस बात का?

जनमेजय―यही कि भगवान् बादरायण के रहते हुए ऐसा भीषण काण्ड क्यों कर हुआ! इस गृह युद्ध मे पूज्यपाद देवव्रत के सदृश महानुभाव क्यों सम्मिलित हुए?

व्यास―आयुष्मन्, तुम्हारे पितामहो ने मुझसे पूछ कर कोई काम नहीं किया था, और न बिना पूछे मैं उनसे कुछ कहने ही गया था, क्योंकि वह नियति थी। दम्भ और अहङ्कार से पूर्ण मनुष्य अदृष्ट शक्ति के क्रीड़ा कन्दुक हैं। अन्ध नियति कर्तृत्व मद से मत्त मनुष्यों की कर्म शक्ति को अनुचरी बनाकर अपना कार्य कराती है, और ऐसी ही क्रान्ति के समथ विराट् का वर्गी- करण होता है। यह एकदेशीय विचार नही है। इसमें व्यक्तित्व को मर्यादा का ध्यान नहीं रहता, 'सर्वभूत-हित' की कामना पर ही लक्ष्य होता है।

जनमेजय―भगवन, इसका क्या तात्पर्य?

व्यास―परमात्मशक्ति सदा उत्थान का पतन और पतन