पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८८
जनमेजय का नाग-यज्ञ

गूँजती करती पुकार–जागो जागो।
हेम पान पात्र प्रकृति, सुधा सिन्धु से
भर कर है लिए खड़ी, जागो जागो।

वपुष्टमा—कलिका, तुम्हारे इस गाने का क्या अर्थ है?

कलिका—महादेवी, वही जो लगा लिया जाय।

वपुष्टमा—कुछ और सुनाओ।

कलिका—अच्छा,

(गाती है)
फूल जब हँसते हैं अभिराम
मधुर माधव ऋतु में अनुकूल।
लगी मकरन्द झड़ी अविराम;
कहे जो रोना, उसकी भूल।
लोग जब हँसने लगते हैं
तभी हम रोने लगते हैं।
उषा में सीमा पर के खेत
लहलहाते कर मलयज स्पर्श।
बिखरते हिमकण विकल अचेत,
उसे हम रोना कहे कि हर्ष।
कृषक जब हँसने लगते है,
तभी हम रोने लगते है।
इसी 'हम' को तुम ले लो नाथ,
न लूटो मेरी कोई वस्तु।