समझा और न बातकी सुनवाई हुई! यहां देखना यह है कि जो कठिनाई इस समय मिलवालोंको पड़ रही है उसको मिस्टर ताताने पहलेही सोच लिया था। लेकिन संसारमें अधिकांश मनुष्य आनेवाले संकटको पहलेसे देखने में असमर्थ होते हैं! इस संबंधमें मिस्टर ताताने एसोसियेशनके मंत्रीके पास एक पत्र भेजा था। पत्र में मजदूरोंकी कठिनाई बतलाते हुए दिखलाया गया था कि कारीगरीकी तरक्कीके साथ साथ काफी और अच्छे मजदूरोंका मिलना और भी मुश्किल होजायगा। ऐसी दशामें बुद्धिमान मनुष्यका काम है कि पहलेसे सोचकर आने वाले संकटको टालनेका यत्न करै। लेकिन जैसा कहा जा चुका है, न तो ताता महोदयकी बात सुनी गई और न कठिनाई दूर हुई। ऊपर दिखलाया जाचुका है कि ताता महोदयने जो ६ आने रोज पर युक्तप्रांतसे मजदूरोंकी उपयुक्त संख्या पानेकी आशा की थी, यह उनकी गलती थी। मजदूरी अगर और बढ़ा दी जाती तो जरूर काम करनेवाले जाते। ज्यों ज्यों उनको ताता मिलोंकी सुविधाओंका अनुभव होता, ज्यों ज्यों उनमें स्वदेशी कारखानों की शुद्ध वायुसे स्वदेश प्रेम अंकुरित होता त्यों त्यों, वे अपने परिवार और ग्रामवालोंको अधिकाधिक संख्यामें ले जाते इस अवसर पर आप पूछ सकते हैं कि साधारण मजदूरी पर युक्तप्रांतके मजदूरे दूर देश उपनिवेशोंमें कैसे चले जाते हैं। इसके उत्तरमें निस्संकोच और निर्भय होकर कहना पड़ता है कि बहुत कम कुली सही व्यवस्थायें जानने पर उपनिवेशोंमें
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जीवन चरित्र।