मुनाफा हुआ। सन् १९१४ और १९१५ ई॰ में २४ लाख ८३ हजारका मुनाफा हुआ। इस तरह ताता महोदयने एक बड़े भारी नये कामको न सिर्फ उठाया बल्कि उसे इतनी जल्दी और इस खूबीके साथ चलाया कि कारखाना स्थायी होगया, हजारों गरीब मजदूरे पलने लगे, न केवल देशका रुपया वाहर जानेसे बचा बल्कि बाहरसे रुपया आने लगा। उद्योगी, चतुर, विचारवान, सदाचारी, साहसी, सत्यप्रिय, धीर, सहृदय, अनुभवी, शिक्षित, देशकालज्ञ, अर्थशास्त्रका ज्ञाता देशभक्त क्या नहीं कर सकता है।
ताता महोदयकी दूसरी स्कीम बहुत बड़ी और औद्योगिक संसारको काया पलट करनेवाली थी। परमात्माने पंच तत्वोको प्राणियोंके कल्याणके लिये बनाया है। लेकिन कादर, मूर्ख और अशिक्षित, प्रकृति के भिन्न २ स्वरूपोंको देखकर कभी प्रसन्न होते हैं, कभी अचंभेमें आते हैं, कभी व्याकुल होते हैं और कभी डरते हैं। लेकिन विद्वान् और वैज्ञानिक लोग पुरुषका प्रकृति पर महत्व दिखाते हुए तत्वोंको पददलित करके, उनको अपने आधीन करके, अपना, अपने देश और संसारका कल्याण करते हैं। हवाके जोरदार झोकोंसे ग्रामीणोंके छप्पर उड़ जाते हैं, आग उड़कर उनकी फूलकी राममडैयाको भस्म कर देती है, अतिवृष्टिसे उनके खेत बह जाते हैं, मवेशी मर जाते हैं और उनके अपने प्राण भी संकट में रहते हैं। बिजली चमकी नहीं कि हम भागकर घरमें छिप जाते हैं। संस्कृत पाठशालाओं में अनध्याय