हमने समुन्नत किया, सदाचारके किसी उच्च आदर्शको क्या हमने देशके बच्चोंके सामने रखा? सबके जवाबमें एक साथही नहीं कहना पड़ता है। फिर हमने किया क्या और सीखा क्या! हमने अपनी दुरुस्ती और मा बापके रुपयोंका नाश किया, सीखा सिगरेट पीना ओर अकड़बेगी चाल चलना।
आर्थिक लाभकी यह दशा है कि घरवालोंसे ५७) मासिक खाकर बी॰ ए॰ पासको अगर ५०) की नौकरी मिल जाती है तो गनीमत समझते हैं। इतनेमें क्या खायं, क्या अपनी पोशाक और शौकीनीमें खर्च करैं, क्या माता पिताके चरणों पर अर्पण करैं, बड़े भाईकी विधवा और अनाथ बच्चोंकोक्या सहायता दें, स्त्रीके लिये कितनेमें क्या गहना बनवावैं, पुत्रको शिक्षाके लिये कितने माहवारमें काम चलैगा, समाचार पत्र और पत्रिकाओंके साल पूरे हो गये हैं, उनके वैल्यूपेबुल डाकखाने में पड़े हैं, अपनी बनाई तीन चार पुस्तकें पड़ी हुई हैं उनके छपानेके लिये भी थोड़ा धन जोड़ना होगा, जिन जिन सभा सोसाइटियोंके मेम्बर हैं उनके मुलायम तकाजे कई आ चुके हैं अब चंदा न जानेपर सभा भवन में नाम टांगकर नादिहंदोंकी फिहरिस्तमें भरती करके हम पदच्युत कर दिये जायंगे, इधर हैदराबादकी बाढ़में कुछ भेजना है, गुजरातके दुकाल और बंगालके दुर्भिक्षमें कुछ न कुछ भेजना ही पड़ेगा, इधर नये डी॰ ए॰ बी॰ कालेजकी अपील छपी है उसमें हाथ बटाना धार्मिक कर्तव्य है, गांवमें जो सरस्वती सदन खोला है उसमें अभी सौ से कम पुस्तकें हैं, अपनी अछूत