पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/४०

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जीवन चरित्र।


बिलेकी दूसरी कोई नौकरी नहीं है। आपही बतलायें कि और किस नौकरी में छः महीने काम करके १२ महीनेकी तनख्वाह मिलती है। कभी कभी हम सोचते हैं कि शायद विलायत हो आने पर काम चलै। इसलिये समुद्र यात्राकी जाती है। इस विदेश यात्राके श्री गणेशके साथ पहला काम जो हम करते हैं वह भेष बदलना है। हिन्दुस्थान में मरदानगी की मुख्य शोभा मूछें हैं। सबसे पहले उन्हीं पर हाथ साफ होता है। अपनी कौमी पोशाकोंका भी अलविदा हुआ, शकल देखकर न आप हमको रामकी संतान कह सकते हैं और न सुग्रीव और जामवंत के वंशज। जहाज पर पैर रखनेके पहलेही दिन भोजनका प्रश्न उठता हैं। कहां तो अपनी सालीकी भी बनाई हुई, दूध की मांडी हुई घीकी पूड़ी नहीं खाते थे कहां अब विधर्मियों के हाथके हाड़ मांस शोणित संयुक्त भोजनका भोग लगाना पड़ता है। अगर सभ्यताके रोबमें आगये तो सभी कुछ उदरस्थ कर गये। लेकिन धर्मका कुछ ध्यान हुआ तो निरामिष भोज्यकी आज्ञा हुई। लेकिन क्या उस पवित्र भोजनागारमें कोई भी वस्तु मांसके संसर्गसे बची है। चावलके दाने दानेमें, आलूके टुकड़े टुकड़ेमें चरबी वैसेही अप्रत्यक्ष रूपसे मिली हुई है, जैसे दूधमे घी, जैसे तिलमें तेल, जैसे गुसाईं तुलसीदासकी कवितामे भगवद्भक्ति। अदन बंदरगाह पहुंचते पहुंचते हमारे जातीय धर्मको काफी धक्का लग चुकता है और हम उपर्युक्त भ्रष्ट जीवनमें अभ्यस्त हो जाते हैं। युरोप निवासके समय तो हम