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पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/६४

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प्रेमचन्द जी की रचना।


सप्त सरोज—इसमें बड़े घरकी बेटी, सौत, सज्जनताका दण्ड, पञ्च परमेश्वर, नमकका दारोगा और परीक्षा नामक सात अत्यन्त रोचक और शिक्षाप्रद गल्पें हैं। उन्हें पढ़कर स्त्रियां सुशीला, पंच निष्पक्ष, धूसखोर ईमान्दार, जुल्मी जमीन्दार दयावान, नकली देशभक्त सच्चे देश सेवक और नवयुवक परोपकारी होनेकी चाह करने लगते हैं। शुष्कसे शुष्क हृदय भी इन गल्पों को पढ़कर पसीज जाता है। इसके लेखक श्रीमान् प्रेमचन्द जी हिन्दुस्थानके उन थोड़ेसे भाग्यवानोंमें हैं जिनकी प्रतिभा अंगरेजी, संस्कृत, मराठी, बङ्गला, गुजराती, हिन्दी तथा उर्दू के अनेक विद्वानोंने स्वीकार की है। इनकी कहानियोंके अनुवाद कई भाषाओं में हो चुके हैं। अंगरेजीके कई तथा हिन्दीके सभी विख्यात पत्रोंने मुक्त कण्ठसे सप्तसरोजकी सराहना की है।

अंगरेजीके सुप्रसिद्ध मासिकपत्र "मार्डन रिव्यू" की सम्मति सुनिये:—"लेखक की गल्पोंका सब एक स्वरसे लोहा मानते है। सभी गल्पें उपदेश प्रद हैं। उनमें मनुष्यके कई महत्वपूर्ण चरित्रोंका चित्रण बड़ी ही खूबीसे किया गया है। हम इस पुस्तकका खूब प्रचार चाहते हैं।" अनेक पूर्वीय भाषाओंके धुरन्धर विद्वान् मिस्टर आर॰ पी॰ ड्यूहर्स्ट एम॰ ए॰, एफ॰ आर॰ जी॰ एस॰ आई॰ सी॰ एस॰ लिखते हैं—"प्रेमचन्दजीकी कितनी ही कहानियां पढ़कर मैंने बहुत विशेष आनन्द प्राप्त किया है। अवश्य ही उनमें कहानियां लिखनेकी ईश्वरीय शक्ति है।"