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जहांगीर बादशाह सं० १६६४।

चित्र खिंचवाया। अहमदबेगखां दो हजार बरकन्दाजोंसे बंगशके पठानों को दण्ड देने के लिये नियत हुआ। अबदुर्रज्जाक मामूरीको जो अटकमें था हुक्म लिखा गया कि दो लाख रुपये राजा विक्रा- माजीतने बेटे मोहनदासके साथ खर्चके लिये भेजदे।

शैख अबुलफजलके बेटे शेख अबदुर्रहमानको दो हजारी जात, डेढ़ हजार सवारका मनसब और अफजलखांका खिताब दिया गया।

बाग शहरआरा।

१३ (आषाढ़ बदी ५) गुरुवारको बादशाह पुलेमस्तांसे बाग शहर आरा तक दोनोंतरफ रुपये अठन्नियां चवन्नियां लुटाता गया। बागकी शोभा देखकर शराब पीने लगा। बीच में चारगज चौड़ी एक नदी बहती थी। बादशाहने मौजमें अपने मित्रों और समान वय वालोंसे उसके फलांगनेको कहा। फलांगने में कई एक नदी में गिर पड़े। बादशाह फलांग गया तो भी उसको यह लिखना पड़ा कि जिस फुरतीसे ३० वर्षको अवस्था में अपने बापके सामने कूदा था अब ४० वर्षको अवस्था में नहीं कूद सकता हूं।

फिर पैदल सात बागोंमें फिरा जो काबुलमें मुख्य थे। पके हुए शाह आलू वृक्षों में ऐसे भले लगते थे कि मानो लाल और माणिक्य लटक रहे हैं।"

इन सातों बागोंमेंसे शहरआरा बाग तो बाबर बादशाहकी चची और मिरजा अबूसईदकी बेटी शहर बानू बेगमका था। और एक बाग अकबर बादशाहकी बड़ी मा बिग्गा बेगमका और एक बादशाहको सगी मा मरयममकानीका बनाया हुआ था। पर शहरआरा बाग काबुलके सब बागों में श्रेष्ठ था। उसमें पीछेसे भी सुधार होता रहता था। बादशाह लिखता है--उसकी सरसाई यहां तक है कि जूता पहने उसके आंगन में पांव रखना शुद्ध प्रकृति और सुसभ्य बुद्धिसे दूर है।

बादशाहने उसके पास धरती मोल लेकर और उसमें पानी

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