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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१२०

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चौथा वर्ष।

सन् १०१७।

बैशाख सुदी ३ संवत् १६६५ से चैत्र सुदी १ संवत् १६६६ तक।

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जलाल मसऊदकी विचित्र मृत्यु।

८ मुहर्रम (बैशाख सुदी १०) गुरुवारको जलालमसऊद जिसको चार सदी जातका मनसब मिला हुआ था और कई लड़ाइयोमें वीरतासे काम करचुका था ५०।६० वर्षको अवस्थामें दस्तोंसे मर गया। जहांगीर लिखता है--"यह अफीमको टुकड़े टुकड़े करके खाया करता था और बहुधा अपनी माके हाथसे भी अफीम खाता था। जब मरने लगा तो उसकी मा भी अति मोहसे बहुतसी वही अफीम जो बेटेको खिलाया करती थी खाकर उसके मरनेसे एक दो घड़ी पीछे मर गई। अबतक किसी माकी बेटेसे इतनी ममता नहीं सुनी गई थी। हिन्दुओंमें रीति है कि स्त्रियां पतिके मरने पर प्रेम या अपने बाप दादाकी कीर्ति तथा लोकलाजसे जल जाती हैं परन्तु हिन्दू मुसलमानोंकी किसी मासे ऐसा काम नहीं हुआ(१)।


(१) जहांगीरके इस निश्चयके अनुसार बहुतसे हिन्दू मानते हैं कि मा बेटेके साथ सती नहीं होती। जैसा कि इस सोरठेसे प्रतीत होता है—

सगो सगाई नांह, मोह पगो सोही सगो।
यह अचरज जग माहं, मा बैठी तिरिया जले॥

पर मारवाड़में प्राचानीकालमें बेटे पोतोंके साथ भी स्त्रियां सती हुई है। इसका प्रमाण वह प्राचीन पुनीत पाषाण देते हैं जो उन की चिताओं पर सैकड़ों वर्षसे खड़े हैं। उस पर तिथि संवत् नाम ठाम और संक्षिप्त वृत्तान्त उन सत्यवती स्त्रियोंका खुदा हुआ है जो अपने बेटे या पोतोंके मोहसे उनकी लाशको गोद में लेकर जल