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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१२७

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जहांगीर बादशाह सं० १६६५।

को जिसमें अकबर बादशाहके मरे पीछे बहुतसा उपद्रव उठ खड़ा हुआ था दो वर्षमें साफ कर देने की प्रतिज्ञा की और यह बात लिखदी कि जो दो वर्ष में यह काम न करदूं तो अपराधी समझा जाऊं। पर उस सेनाके सिवा जो दक्षिणमें है बारह हजार सवार और १२ लाख रुपये फिर मुझको मिलें। बादशाहने हुक्म दे दिया कि तुरन्त तय्यारी करके उसको बिदा करें।

पेशरौखां।

१ रज्जब (आश्विन सुदी २) को पेशरौखां मर गया। इसको शाह तुहमास्पने हुमायूं बादशाहको सेवा करनेके लिये दिया था।

इसका नाम तो आदत था पर अकबर बादशाहने फर्राशखाने का दारोगा बनाकर पेशरौखांका खिताब दिया था। इस काम में बहुत योग्य था ९० वर्षको उमरमें १४ वर्षके जवानोंसे बढ़कर साहसी था। मरते समय तक दमभरके लिये भी मद्य पिये बिना नहीं रहता था। १५ लाख रुपये छोड़ मरा। बेटा सुपात्र न था इसलिये आधा फर्राशखाना उसके रहा और आधा "तहमाक" को मिल गया।

उसी दिन कमालखां भी मर गया। वह दिल्लीके कलालोंमेंसे था। बादशाहको उसका बहुत भरोसा था इसलिये बाबर चीखाने का दारोगा बनाया था।

लालखां कलावत।

२ (आश्विन सुदी ३) को लालखां कलावत जो अकबर बाद- शाहको सेवामें छोटेसे बड़ा हुआ था ६० वर्षका होकर मर गया। अकबर बादशाह हिन्दीके जो गान सुनता वह उसे याद करा देता था। उसकी एक लौंडी इस शोकमें अफीम खाकर मर गई। बादशाह लिखता है कि ऐसी वफादार स्त्री मुसलमानोंमें कम देखनेमें आई।

ख्वाजेसराओंका निषेध।

हिन्दुस्थान और विशेषकरके बङ्गालके जिले सिलहट में बहुत