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संवत् १६६८

बादशाहने यह समाचार सुनकर मुअज्जु लमुल्क और नादअली के मनसब बढ़ाये और अहदादके दमन करनेमें खानदौरां और काबुलियोंकी सुस्ती देखकर बेटों सहित खानखानांके भेजनेका विचार किया जो दरबारमें बेकार बैठा था। इतनेमेंही कुलीचखां जो पञ्जाबसे बुलाया गया था आगया और खानखानांको नियत होनेसे दिल में दुखी हुआ। निदान जब उसने इस कामका स्पष्ट वचन दिया तो बादशाहने पञ्जाबका सुबा तो मुरतिजाखांको दिया और कुलीचखांको छः हजारी जात और पांच हजार सवारों का मनसब देकर काबुलको संरक्षण तथा अहदाद और पहाड़ी चोरों के शासन पर नियत किया। खानखानांसे कहा कि सूबे आगरेसे सरकार कन्नौज और कालपीको जागीरकी तनखाहसें लेकर उस देशक दुष्टोंका दमन करे। बिदा करते समय प्रत्येकको खासे खिलअत हाथी और घोड़े दिये।

महाबतखां जो दक्षिण सेनाके अमीरोंको आपसमें मेल मिलाप रखनेका हुक्म सुनानेके लिये गया था २१ रबीउस्तानी (द्वितीय आबाढ़ बदी ९) को दक्षिणसे लौट आया।

इसलामखांके लिखनेसे इनायतखांका मनसब पांच सदी जात बढ़कर दो हजारी होगया और राजा कल्याण पांच सदी जात और तीन सौ सवार बढ़नेसे डेढ़ हजारी जात और आठ सौ सवारोंके मनसबको पहुंचा।

हाशिमरखांको जो उड़ीसेमें था कशमीरकी सूबेदारी दीगई। इसके वहां पहुंचने तक काम करनेके लिये इसका चचा ख्वाजगी मुहम्मदहुसैन कशमीरमें भेजा गया। हाशिमखांके बाप मुहम्मद कासिमने अकबर बादशाहके समयमें कशमीरको जीता था।

कुलीचखांके बेटे चीनकुलीचको खान पदवी मिली। उसके बापकी प्रार्थना तथा तिराहदेशके प्रवन्धकी प्रतिज्ञा करने पर उसे पांच सदी जात और तीन सौ सवारोंकी तरक्की मिली।

१४ अमरदाद (सावन बदी १३) को एतमादुद्दौलाने पुराना