ईरानका एलची।
१८(१) फरवरदीन (बैशाख बदी १०) को संक्रांति(२)का उत्सव हुआ। ईरानके शाह अब्बासके एलची यादगारअलीने हाजिर होकर मुजरा किया। शाहका पत्र दिया सौगातें जो लाया था दिखाईं। उनमें अच्छे अच्छे घोड़े और कपड़ोंके थान थे। बाद- शाहने उसको भारी खिलअत और तीस हजार रुपये दिये। पत्रमें अकबर बादशाहके मरनेका शोक और जहांगीरके गद्दी पर बैठने का हर्ष था।
खानखानांके बेटे एरजको शाहनवाजखांका खिताब मिला।
मोहरों और रुपयोंका तौल।
बादशाहने तख्त पर बैठतेही बाट और गज बढ़ा दिये थे। रुपये और मोहरका तौल तीन रत्ती अधिक कर दिया था। परन्तु अब यह बात जानकर कि प्रजाका हित मोहर और रूपयेका पुराना तौल रहनेहीमें है अपने तमाम देशों में हुक्म भेज दिया कि ११ उर्दीबहिश्त (जेठ बदी ४) से टकसालों में रुपये और मोहरें जैसे पहिले बनती थीं वैसीही बना करें।
२ सफर १०२० (बैशाख सुदी ४) शनिवारको अहदाद यह सुनकर कि काबुलमें कोई बड़ा सरदार नहीं है खानदौरां बाहर गया हुआ है केवल मुअज्जु लमुल्क थोड़ेसे आदमियोंसे है, बहुतसे सवार और पैदल लेकर काबुलपर चढ़ आया। उसके पठान अलग अलग टोलियां बांधकर शहर के बाजारों और कूचोंमें घुस गये। परन्तु मुअज्जु लमुल्क और पुरवासी काबुलियों और कजलबाशोंने लड़कर उनको भगा दिया और उनके मुखियाको जिसका नाम सकी था मार डाला। अहदाद यह दशा देखकर भाग गया उसके ८० आदमी मारे और २५० घोड़े पकड़े गये।
(१) तुजुकमें इस दिन २४ मुहर्रम लिखी है, २३ चाहिये क्योंकि १ फरवरदीन ६ मुहर्रमको थी।
(२) चण्डू पञ्चाङ्गमें भी मेख संक्रान्ति इसी दिन लिखी है।