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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१६३

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संवत् १६६८।

को हाकेका प्रबंध करनेके लिये भेजा था। उसने डेढ़ कोममें कनातें और गुलालबादें(१) लगाकर हरनोंको हर तरफसे उनमें घेरा और बादशाहको खबर दी बादशाह २२ दे (पोष सुदी ९) गुरुवारको मलूनगर गया शुक्रवारसे शिकार शुरू हुआ। नित्य बेगमों सहित उम कनातों में जाकर मनपाने हरन तोर और बंदूकसे मारता। रविवार और गुरुवारको बंदूक नहीं चलाता था। जाल डालदार जीते हरन पकड़ता था। शुक्रवारसे गुरुवार तक ७ दिन में ९१७ हरनी और हरन शिकार हुए। उनमें ६४१ जीते पकड़े थे। जीतोंमेंसे ४०४ तो फतहपुर भेजकर वहांके रमनोंमें छुड़वा दिये। ८४ को नाकमें चांदीकी नथें पहनाकर उसीजगह छोड़ दिया। २७६ जो तीर बंदूक और चीतोंसे मारे गये थे नित्य बेगमों, महल की टहलनियों, अमीरों और ड्योढ़ीके चाकरोंको बांटे जाते थे। जब बादशाह बहुत शिकार करके उकता गया तो अमीरोंको हुक्म दे दिया कि जो बच गये हैं उन्हें वह मारलें और आप शहरमें आगया।

पुण्यशालाएं।

१ वहमन (माघ बदी ३।४) को बादशाहने हुक्म दिया कि बादशाही देशोंके बड़े बड़े शहरों में अहमदाबाद, इलाहाबाद, खाहार, आगरा और दिल्ली आदिके समान खैरातखाने बनावें। छः नगरोंमें पहलेसे थे। २४ नगरों में और नियत हुए।

राजा बरसिंहदेव।

४ (माघ बदी ६) को राजा बरसिंहदेवका मनसब बढ़कर चार हजारी जात और दो हजार सवारका होगया। बादशाहने उप्तको जड़ाऊ तलवार भी दी। दूसरी खासकी तलवार जिसका नाम शेरबच्चा था शाहनवाजखांको इनायत की।


(१) गुलालबाद लाल रंगकी बादशाही किनातेंके घेरेका नाम था।

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